Monday, July 5, 2010

मिलावट कहां नहीं है श्रीमान्

चूंकि भोजन प्रधानमंत्री का था इसलिए मूंग का ज्यादा हरा होना गुनाह हो गया। लगे हाथ यह भी पता चल गया कि खरबूजे का बीज भी फंगस का शिकार है। जाहिर है, मामला प्रधामंत्री का था इसलिए खबर नेशनल बन गई। यहां हम और आप हर रोज मिलावटी भोजन कर रहे हैं। हमारी आपकी सेहत पर इसका असर भले ही पड़ रहा हो लेकिन सरकार की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।
इस देश के हर जिला मुख्यालय में खाद्य नियंत्रक का दफ्तर होता है। उसमें बहुत से फुड इंस्पेक्टर होते हैं। नगर निगमों और नगर पालिकाओं के पास भी स्वास्थ्य की निगरानी के लिए बड़ा अमला होता है फिर भी धनिया, हल्दी और मिर्ची से लेकर सभी तरह के मसालों में भरपूर मिलावट की जाती है। चावल में कंकड़ तो अब कोई मुद्दा ही नहीं है।
जहां तक मूंग के हरे होने का सवाल है तो यह जगजाहिर है कि अनाज को आकर्षक बनाने के लिए पॉलिसिंग के दौरान रंगों का बड़ी चालाकी से उपयोग किया जाता है। इससे घटिया स्तर का अनाज भी खूबसूरत दिखने लगता है। सामान्य व्यक्ति समझता है कि मूंग ज्यादा हरा है तो बेहतर होगा लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत होती है। यही स्थिति तुअर दाल के साथ भी है। मिलावट और रंगरोगन का यह कारोबार इतना बड़ा और इतना प्रभावशाली है कि इस पर अंकुश लगाने की कोशिश होती भी नहीं है और स्थानीय स्तर पर यदि थोड़ी बहुत कार्रवाई हो भी जाए तो मिलावटखोरों का कुछ बिगड़ता नहीं है।
छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक पकी हुई खाद्य सामग्री को खुले में बिकते हुए हम सभी बिकते देखते हैं। नगर निगम और नगर पालिकाओं के खाद्य विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी इसे देखते हैं लेकिन शायद ही कभी कोई कार्रवाई होती हो! यहां तक कि मंदिरों के बाहर बिकने वाला लड्डू भी अस्वस्थ्यक हालात में बेचे जाते हैं। साल-दो साल में कभी कभार छापा भी पड़ता है और खाद्य सामग्री नष्ट कर दी जाती है लेकिन इससे ज्यादा कार्रवाई नहीं होती है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि मिलावटखोरों के प्रति हमारा प्रशासन इतना सहज क्यों रहता है? उसे लोगों के स्वास्थ्य की चिंता क्यों नहीं सताती है? इसका जवाब सीधा सा है कि इलाके का फुड इस्पेक्टर वसूली पर ज्यादा ध्यान देता है, कार्रवाई पर कम! मिलावटी दूध खूब बिक रहा है लेकिन नगर निगमों को फिक्र कहां है?
केवल मिलावट की ही बात नहीं है, अब तो नकली माल स्वास्थ्य के लिए ज्यादा बड़े खतरे के रूप में बाजार में मौजूद है। लोग मजाक में कहते भी हैं कि यदि नकली अनाज तैयार करने की कोई विधि होती तो इस देश में वह भी हो जाता।
बहरहाल नकली माल हर कहीं बिक रहा है और यह तय कर पाना कठिन होता है कि जो आप खरीद रहे हैं, वह असली है या नकली! दूरदराज गांव और कस्बों की बात तो छोड़ दीजिए, देश की राजधानी दिल्ली में पिछले सप्ताह ही नकली ‘कोल्ड ड्रिंक’ बनाने का कारखाना पकड़ा गया। जरा कल्पना कीजिए कि जब दिल्ली में यह सब हो सकता है तो दूसरे शहरों का क्या हाल होगा। न जाने कब से यह सब चल रहा था और जितने लोगों ने यह नकली कोल्ड ड्रिंक पिया होगा, उनके स्वास्थ्य पर इसका क्या असर हुआ होगा? ...लेकिन यहां आम आदमी के स्वास्थ्य को लेकर सरकार चिंतित कहां है?
बात केवल खाद्यान, कोल्ड ड्रिंक या मसालों की ही नहीं है, नकली दवाईयों का बड़ा कारोबार इस देश में फैला हुआ है। पिछले साल एक टीवी चैनल ने बड़े पैमाने पर स्टिंग आॅपरेशन किया और देश को बताया कि किस तरह बड़ी कंपनियों के हूबहू नकली रैपर में नकली दवाईयां पैक की जाती हैं। यह सच्चाई भी सामने आई कि एक स्ट्रीप में यदि दस गोलियां हैं तो उसमें से पांच नकली होंगी और पांच असली ताकि रोग पर कुछ असर हो जाए और मिलावट पकड़ में नहीं आए।
यह सारी सच्चाई कैमरे के सामने थी लेकिन कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। इक्का-दुक्का लोग पकड़े गए और अधिकारियों ने खूब शाबासी बटोरी लेकिन परिणाम कुछ भी सामने नहीं आया। बाजार में नकली दवाईयां अब भी मौजूद हैं।
और अब कानून की बात करें! मिलावटखोरों पर नकेल कसने के मामले में हमारा कानून अत्यंत ही लचर है। मिलावट को साबित करना टेढ़ी खीर है और साबित भी हो जाए तो महज कुछ महीने या कुछ साल की सजा होती है। कानून इतना कमजोर नहीं होना चाहिए।

2 comments:

  1. विकास जी .
    आलेख प्रशंसनीय ।

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा लेख..बिलकुल सही बात की है.
    कानून में मिलावटखोरी के लिए कोई सख्त क़ानून ही नहीं है. और कोई कोशिश भी नहीं करता. हम खुद अपने प्रतिनिधियों से बात नहीं करते तो वो भी क्यों करेंगे.

    ReplyDelete